Monday, 21 October 2019


सरदार अवतार सिंह आजाद के १०० साला जन्म दिवस पर श्रधा सुमन : २० दिसम्बर २०१६

सरदार अवतार सिंह आजाद का जन्म २० दिसम्बर  १९१६ को फारुका तत्कालीन पाकिस्तान में हुआ, इनकी शिक्षा खालसा हाई स्कूल सरगोधा में हुई | पिता की असमय मृत्यु और परिवार में बड़े बेटे होने के नाते शुरू से ही मेधावी रहे अवतार जी को अपनी पढाई बीच में ही छोडनी पर्डी |

शहीद भगत सिंह के बलिदान से प्रेरित होकर वे छोटी सी उम्र में स्वतंत्रता आन्दोलन से जुड़ गए और कांग्रेस के सक्रिय कार्यकर्ता रहे | इस दौरान उन्होंने महात्मा गाँधी, पंडित जवाहर लाल नेहरु, आसफ अली खान, मास्टर तारा सिंह तथा अन्य कई  जुझारू एवं कर्मठ स्वतंत्रता सेनानियों के साथ काम करते रहे| उन्होंने १९४२ के भारत छोड़ों अन्दोलन में भी मुख्य भूमिका निभाई  तथा लाहौर जेल में बंदी भी रहे| १९४७  में देश की आज़ादी के साथ ही साथ देश का बंटवारा भी हुआ , न चाहते हुए  भी स्थानान्तरण हुआ और श्री आज़ाद भी बंटवारे के बाद घर छोड़ कर काफिले के साथ आठ दिनों की पैदल यात्रा करते हुए अमृतसर पहुंचे |

इस बीच पढाई  छुट जाने के बाबजुद उन्होंने भाषाओं पर अलग मुकाम हासिल कर लिया था | वह पंजाबी और उर्दू में लेखन किया करते थे  और इंग्लिश में याचिकाएं लिखा करते थे | सरगोधा से निकलते वक्त वह अपने साथ अपनी सिंगर सिलाई मशीन का उपरी हिस्सा और एक कैंची कपडें में बांध कर ले आये थे |

आजाद जी स्वाभिमानी व्यक्तित्व के धनी थे, किसी के आगे हाथ नहीं फैलाना पड़ें  इसलिए उन्होंने अमृतसर में मामुली पारिश्रमिक  के एवज में लोगो की याचिकाएं लिखी  तथा अपने सिलाई के हुनर का इस्तेमाल भी जीवकौपार्जन के लिए किया | उस समय उनके बड़े बेटे सविंदर बीर सिंह उनके साथ थे | कुछ महीने अमृतसर में रहने के बाद श्री आज़ाद  अपने एक मित्र के आमंत्रण पर रांची आ गए | यहाँ आने पर भी अपने से अधिक अन्य लोगों के कष्टों को महत्व दिया और रांची में रिफूजी कैंप के सचिव के पद पर कार्य करते हुए विस्थापितों के पुनर्वास के लिए बहुमूल्य योगदान दिया |इस विलक्षण और एकार्ग बुधि वाले व्यक्ति में ज्ञान उपार्जन की अभिलाषा इतनी तीव्र  थी कि उन्होंने स्वाध्ययन के द्वारा पंजाबी, फारसी, उर्दू , हिंदी और अंग्रेजी  का अच्छा ज्ञान हासिल कर लिया एवं बुद्धिजीवियो में अपनी अलग पहचान बनाने में सफल हो गए | उनकी लिखावट पंजाबी,उर्दू और इंग्लिश में बहुत ही सुंदर थी | वे अपने रिश्तेदारों और मित्रों के साथ हमेशा पत्राचार भी किया करते थे , उनके लिखे हुए पत्रों को लोग संजो कर रखते थे  तथा बार बार पढते थे | उनके तीन छोटे भाई और दो बड़ी बहने हमेशा उनके पत्रों का बड़ी बेसब्री से इतंजार करते थे | श्री आज़ाद का जीवन बहुत ही सादगी पूर्ण था | धर्म में उनकी निष्ठा उनकी जीवन शैली में झलकती थी | श्री गुरु ग्रंथ साहिब में उनकी विशेष आस्था एवं लग्न थी और कोशिश करते थे  कि उन विचारों को अपने व्यावहारिक जीवन में ला सके | गीता, बाईबल और कुरान का अध्ययन और चर्चा  अपने मित्रो और संगोष्टियों में भी  किया करते थे | उनके भाषणों से सभी  इतने प्रभावित हो जाते थे  कि दो तीन घंटे तक पूरी शान्ति से उनकी बाते सुना करते थे | उनका गुरुबाणी का उच्चारण बहुत ही स्पष्ट,शुद्ध और बनावट विहीन हुआ करता था | वे सदैव दूसरों की सहायता के लिए तत्पर रहा करते थे और सामाजिक कार्य में पुरे उत्साह से हिस्सा लिया करते थे | रांची में उनका सम्मान सभी तबके के लोग चाहे प्रशासनिक अधिकारी , बुद्धिजीवी, सामाजिक संस्थाओं से जुड़े  व्यक्ति तथा आम जनता  सभी किया करते थे | उन्होंने शान्ति समिति के सक्रिय सदस्य के रूप में १९६७ में साम्प्रदायिक दंगों को शांत करने में महतवपूर्ण भूमिका निभाई | उन दिनों संवेदनशील  इलाकों में देर रात को भी शान्ति का सन्देश देने चले जाते थे  जहाँ दिन में लोग पार  होने से कतराते थे ,उनकी इज्जत एक मसीहा या शान्ति दूत के रूप में की जाती थी |

साम्प्रदायिक सदभाव तथा समाजवाद में गहरी आस्था होने के कारण ये कांग्रेस के सक्रिय कार्यकर्ता रहे | इनके श्रीमती इंदिरा गाँधी , लाल बहादुर शास्त्री,सरदार स्वर्ण सिंह, जगजीवन राम, कार्तिक उरांव, निरल होरो,इंद्रकुमार गुजराल,श्री रामदयाल मुंडा,गुलाम सरवर इत्यादि से अच्छे सम्बन्ध थे | श्री आजाद बहुत सी सभाएं अपने आवास में आयोजित किया करते थे |

वे १९६५ से रांची की केंद्रीय शान्ति समिति के सक्रिय सदस्य रहे| १९६७ में रांची में भयंकर साम्प्रदायिक दंगों के बाद करीब दो सप्ताह तक अपना व्यवयास बंद कर रात  दिन लोगों की सेवा में जुटे रहे | इसमें रांची के कई समाजसेवियों  ( श्री गंगा प्रसाद बुधिया , श्री राम रतन राम,अमानत अली, पी के घोष, बैजनाथ सिंह,मकबूल हसन ) का भरपूर सहयोग इन्हें मिला | इनका अपना कोई व्यक्तिगत या राजनीतिक स्वार्थ नहीं होने के कारण सभी लोग इनके आहवान  पर इनके साथ कदम से कदम मिलाने को तैयार रहते थे |

सिख समाज में भी इनका एक विशिष्ट स्थान हमेशा रहा | कई सालों तक ये गुरुद्वारा श्री गुरु सिंह सभा रांची के सचिव पद पर कार्य करते रहे  और हर धार्मिक और सामाजिक कार्य को तन्मयता से पूरा किया| इन्होने १९६६-१९६९ में बिहार सिख प्रतिनिधि बोर्ड के महासचिव पद को सुशोभित किया और इसी दौरान १६-१८ जनवरी १९६६  को गुरु गोबिंद सिंह जी के ३०० साला जन्म उत्सव पर उनके जन्म स्थान पटना साहिब तथा गाँधी मैदान पटना में उनके शस्त्रों की विशाल प्रदर्शनी लगाई तथा तीन दिनों तक महासमगम का आयोजन इनके कुशल नेतृत्व में किया गया | १९६९ में रांची में गुरु नानक देव जी के ५०० साला जन्म दिवस पर भी भव्य तथा ओजपूर्ण आयोजन किया गया जिसमें  कई विद्वानों  जैसे सरदार स्वर्ण सिंह, डा तारण  सिंह, डा हरनाम सिंह शान, संत हरचंद सिंह लोंगोवाल  के विचारों से रांची के सिख समाज को अवगत कराया | वे १९६८ – १९७२ तक ईस्टर्न इंडिया सिख कौंसिल के महामंत्री भी रहे | गुरु नानक स्कूल को स्थापित करने में भी आज़ाद जी का भरपूर योगदान रहा और इसकी प्रगति से एक विशेष लगाव उनके जीवन के अंतिम वर्षों तक बना रहा |

अपने जीवन में उन्होंने धार्मिक आस्था , परमात्मा पर अटूट विश्वास, कर्म ,ईमानदारी तथा बाँट कर खाने पर अमल किया | उनका अपना मोटर पार्ट्स का व्यावसाय जिसे उन्होंने बड़े लगन से १९५९ में स्वतंत्र रूप से शुरू  किया था सफलता की उचाईयां छूता रहा और वह अपनी पारिवारिक तथा सामाजिक जरूरतों को पूरा करने में सफल रहे | उन्होंने कभी भी पूंजीवादी बनने का सपना नहीं देखा | वे अपनी संतानों को ही अपनी पूंजी मन करते थे | उन्होंने अपने बच्चों की शिक्षा पर बहुत ध्यान दिया और एक अच्छे पिता की तरह जीवन में सफल होने की बारीकियों से अवगत कराया इसी के परिणाम स्वरुप उनके तीनो बच्चों ने उच्च शिक्षा के दायरे में मुकाम हासिल किया |

१९८४ में इंदिरा गाँधी जी की हत्या से उत्पन सिख विरोधी दंगों से पुरे देश की साम्प्रदायिक  स्थिति बहुत ही नाजुक हो गई थी , सिखों का पलायन पंजाब की ओर होने लगा | इन सभी को देखते हुए अपने कुछ सहयोगियों के साथ सर्व धर्म मिलन परिषद् नामक समाजसेवी संस्था शुरू की ,यह संस्था सभी धर्मों के पर्व एक साथ मानाने लगी जिससे लोगों में फिर से एक दुसरे के प्रति विश्वास जागने लगा | इस संस्था में उनका साथ मुख्य रूप से डा सिद्धार्थ मुख़र्जी , श्री सीता राम मोदी, प्रो सज्जाद अहमद, गुलाम मुस्तफा, हरिराम मिश्रा, श्री राम दयाल मुंडा ,सर्वेश्वर दयाल इत्यादि ने दिया | इस संस्था के द्वारा सामाजिक आयोजन करीब बीस सालो तक होते रहे जब तक श्री आज़ाद शारीरिक रूप से स्वस्थ रहे |

अपने इस अद्भुत ओजपूर्ण व्यक्तित्व के लिए उन्हें कई संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया गया |

नागपुरी कला संगम रांची ने १४ अगस्त २००० को सदभावना के लिए किये गए इनके प्रयासों के लिए विशेष सम्मान से आभूषित किया |

समता दल द्वारा आयोजित अल्पसंख्यक सम्मलेन में भी इन्हें सम्मानित किया गया |

महिला विकास मंच ने इन्हें शाने झारखण्ड आभूषण से नवाजा |

पिछले कुछ सालों से इनकी सेहत शिथिल रहने लगी थी  इसलिए ये ज्यादा समय घर पर रहा करते थे | उनकी सामाजिक गतिविधिया बहुत कम हो गई थी | उनके मित्र यदा कदा मिलने आया करते थे |

सरदार अवतार सिंह आजाद जी अपनी सांसारिक यात्रा पूरी कर ११ जून २०१० को परलोक सिधार गए | उनके निधन से रांची की जनता ने एक अच्छा समाज सेवक खो दिया|

आज भी परिजन उन्हें सम्मान से याद करते हें |

आज उनके १०० साला जन्म दिन पर हम सभी उनके द्वारा दिखाए हुए मानवता के रास्ते पर चलने की कोशिश करे ,यही उन्हें सच्ची श्रधांजलि होगी |


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